सैयद हुसैन शाह, एक साधारण घोड़ा सवार, कश्मीर के बैसरन में पर्यटकों को घुमाने का काम करते थे। उनकी जिंदगी मेहनत और मेहमाननवाजी के इर्द-गिर्द घूमती थी। लेकिन एक दिन, जब आतंकियों ने निर्दोष पर्यटकों पर हमला किया, सैयद ने अपनी जान की परवाह किए बिना बहादुरी का परिचय दिया।
उस दिन, बैसरन की खूबसूरत वादियों में सैर कर रहे पर्यटकों पर आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कीं। चारों ओर दहशत और चीख-पुकार मच गई। सैयद उस वक्त वहीं मौजूद थे। उन्होंने देखा कि आतंकी निहत्थे और मासूम लोगों को निशाना बना रहे थे। कश्मीर की मेहमाननवाजी की मिसाल को जिंदा रखते हुए, सैयद ने आतंकियों को रोकने का फैसला किया।
उन्होंने निहत्थे होकर भी हिम्मत दिखाई। आतंकियों से अपील की, “ये हमारे मेहमान हैं, मासूम हैं, इन्हें मत मारो।” लेकिन आतंकियों पर उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ। सैयद ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक आतंकी से भिड़ने का साहस दिखाया और उसकी राइफल छीनने की कोशिश की। इस दौरान आतंकी ने उन पर गोली चला दी। गोली लगने से सैयद गंभीर रूप से घायल हो गए और मौके पर ही उनकी मौत हो गई।
सैयद हुसैन शाह की इस वीरता ने न केवल कश्मीर की मेहमान नवाजी की भावना को जिंदा रखा, बल्कि उनकी शहादत ने मानवता और साहस की एक मिसाल कायम की। वे उन गुमनाम नायकों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी जान देकर भी दूसरों की जिंदगी बचाने की कोशिश की। उनकी कहानी कश्मीर के लोगों के लिए गर्व का विषय है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
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