मालेगांव ब्लास्ट केस, जो 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में हुआ था, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह धमाका एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में रखे बम के जरिए किया गया था, जिसने पूरे देश को हिला दिया था। इस मामले में बीजेपी नेता और भोपाल की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर मुख्य आरोपी रही हैं। हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने इस मामले में एक चौंकाने वाला यू-टर्न लिया है, जिसने इस केस की दिशा और जांच की विश्वसनीयता पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
मालेगांव ब्लास्ट: क्या हुआ था?
29 सितंबर 2008 को मालेगांव के मुस्लिम बहुल इलाके में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में धमाका हुआ था। यह विस्फोट इतना भयानक था कि इसमें 6 लोगों की जान चली गई और 100 से अधिक लोग घायल हुए। इस घटना की शुरुआती जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने की थी। जांच के दौरान साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया। ATS ने दावा किया था कि इस धमाके के पीछे कट्टरपंथी हिंदू संगठनों का हाथ था।
2011 में यह मामला NIA को सौंप दिया गया। NIA ने 2016 में अपनी जांच के बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और तीन अन्य आरोपियों—श्याम साहू, प्रवीण टाकलकी और शिवनारायण कलसांगरा—को क्लीन चिट दे दी थी। NIA ने दावा किया था कि इनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले और इन्हें मामले से मुक्त किया जाना चाहिए। हालांकि, NIA कोर्ट ने केवल साहू, कलसांगरा और टाकलकी को बरी किया, जबकि साध्वी प्रज्ञा को मुकदमे का सामना करने का आदेश दिया।
NIA का यू-टर्न: सख्त सजा की मांग
हाल ही में, 2025 में, NIA ने मुंबई की विशेष अदालत में एक नया रुख अपनाया। एजेंसी ने 1500 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की, जिसमें कहा गया कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अन्य आरोपियों को बेकसूर मानना गलत था। NIA ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) की धारा 7A का हवाला देते हुए मांग की कि आरोपियों को सख्त सजा दी जाए। यह बदलाव तब आया जब मामला अपने अंतिम चरण में है, और विशेष NIA अदालत ने 19 अप्रैल 2025 को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला 8 मई तक के लिए सुरक्षित रख लिया।
NIA के इस नए रुख ने कई सवाल खड़े किए हैं। पूर्व सरकारी वकील रोनी सलियन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और आरोप लगाया कि NIA का रवैया शुरू से ही साध्वी प्रज्ञा के पक्ष में झुका हुआ था। उन्होंने कहा कि इस तरह का यू-टर्न जांच एजेंसी की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर: कौन हैं?
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर मध्य प्रदेश के भिंड जिले की रहने वाली हैं और हिंदू राष्ट्रवाद से जुड़ी गतिविधियों में सक्रिय रही हैं। 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में उनकी गिरफ्तारी के बाद वे चर्चा में आईं। इस मामले में वे लंबे समय तक जेल में रहीं, लेकिन 2017 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भोपाल से बीजेपी के टिकट पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को हराकर संसद में प्रवेश किया। हालांकि, 2024 के चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया गया। साध्वी प्रज्ञा अपने विवादित बयानों के लिए भी जानी जाती हैं और खुद को “राष्ट्रवादी साध्वी” कहती हैं।
कोर्ट में क्या हुआ?
मालेगांव ब्लास्ट केस की सुनवाई लंबे समय से चल रही है। इस दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों की जांच की, जिनमें से 34 अपने बयानों से मुकर गए। बचाव पक्ष ने 8 गवाह पेश किए। साध्वी प्रज्ञा कई बार स्वास्थ्य कारणों से कोर्ट में पेश नहीं हुईं, जिसके चलते उनके खिलाफ कई बार जमानती वारंट जारी किए गए। नवंबर 2024 में भी उनके खिलाफ 10,000 रुपये का जमानती वारंट जारी हुआ था, जिसे बाद में उनकी पेशी के बाद रद्द कर दिया गया।
हाल ही में साध्वी प्रज्ञा ने अपनी खराब सेहत का हवाला देते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने दावा किया कि ATS की कथित प्रताड़ना के कारण उनकी सेहत बिगड़ गई। उन्होंने लिखा कि उनके मस्तिष्क में सूजन, आंखों से कम दिखना, बोलने में असंतुलन और पूरे शरीर में सूजन की समस्या है।
विवाद और सवाल
NIA के इस यू-टर्न ने कई विवादों को जन्म दिया है। कुछ लोग इसे न्याय की दिशा में एक कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे राजनीतिक दबाव का नतीजा बता रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। एक यूजर ने लिखा, “NIA का यह यू-टर्न जांच की गंभीरता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है।” वहीं, कुछ लोग साध्वी प्रज्ञा के स्वास्थ्य दावों को सहानुभूति पाने की रणनीति मान रहे हैं।
मालेगांव ब्लास्ट केस 17 साल बाद भी अपने नतीजे पर नहीं पहुंचा है, लेकिन NIA का ताजा रुख इस मामले को एक नया मोड़ देता है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अन्य आरोपियों के भविष्य का फैसला अब विशेष NIA अदालत के हाथ में है, जिसने 8 मई 2025 तक अपना निर्णय सुरक्षित रखा है। इस बीच, यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी बहस का विषय बना हुआ है। क्या यह यू-टर्न न्याय की जीत है या जांच एजेंसी की विश्वसनीयता पर एक और धब्बा? यह सवाल अभी अनुत्तरित है।
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