नई दिल्ली, 23 अप्रैल 2025: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए भीषण आतंकी हमले, जिसमें 26 पर्यटकों की मौत हुई, ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को नए निचले स्तर पर ला दिया है। इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कूटनीतिक और रणनीतिक कदम उठाए हैं। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बुधवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में इन फैसलों की घोषणा की, जिसमें 1960 के सिंधु जल समझौते को निलंबित करना, अटारी सीमा बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीजा प्रतिबंध, राजनयिक निष्कासन और दोनों देशों में राजनयिकों की संख्या को 55 से घटाकर 30 करना शामिल है।
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सिंधु जल समझौता निलंबित: पानी की चोट
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल समझौते को भारत ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। यह समझौता, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षरित किया था, सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों के जल बंटवारे को नियंत्रित करता है। विदेश सचिव मिसरी ने कहा कि यह निर्णय सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक में लिया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निलंबन तब तक प्रभावी रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को पूरी तरह बंद नहीं करता।
यह कदम पाकिस्तान के लिए गंभीर आर्थिक और सामाजिक परिणाम ला सकता है, क्योंकि उसकी कृषि और जल आपूर्ति सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। हालांकि, विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से विरोध की संभावना है, और पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में ले जा सकता है।
अटारी सीमा बंद: व्यापार और आवागमन पर रोक
भारत ने अटारी-वाघा सीमा पर एकीकृत चेकपोस्ट (आईसीपी) को तत्काल प्रभाव से बंद करने का फैसला किया है। यह सीमा दोनों देशों के बीच व्यापार और लोगों के आवागमन का प्रमुख रास्ता है। मिसरी ने कहा कि वैध वीजा के साथ आए पाकिस्तानी नागरिक 1 मई 2025 तक इस मार्ग से वापस जा सकते हैं, लेकिन इसके बाद कोई आवागमन नहीं होगा। इस कदम से दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर गहरा असर पड़ेगा।
सार्क वीजा प्रतिबंध और पाकिस्तानी नागरिकों पर रोक
भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों को सार्क वीजा छूट योजना के तहत भारत में प्रवेश की अनुमति को रद्द कर दिया है। साथ ही, भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे के भीतर देश छोड़ने का अल्टीमेटम दिया गया है। यह कदम पाकिस्तान के साथ सभी प्रकार के नागरिक संपर्क को सीमित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। मिसरी ने कहा कि पहलगाम हमले में सीमा पार आतंकवाद के स्पष्ट सबूतों के बाद यह निर्णय लिया गया।
राजनयिक निष्कासन और संख्या में कटौती
पाकिस्तानी उच्चायोग में तैनात रक्षा सलाहकारों को “पर्सोना नॉन ग्राटा” (अवांछित व्यक्ति) घोषित कर दिया गया है और उन्हें एक सप्ताह के भीतर भारत छोड़ने का आदेश दिया गया है। इसके जवाब में, भारत ने इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग से भी सैन्य सलाहकारों को वापस बुलाने का फैसला किया। साथ ही, दोनों देशों में राजनयिकों की संख्या को 55 से घटाकर 30 करने का निर्णय लिया गया है। यह कदम दोनों देशों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण राजनयिक संबंधों को और कमजोर करता है।
पहलगाम हमला: भारत की प्रतिक्रिया का आधार
पहलगाम के बैसारन घाटी में हुए हमले में लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने जिम्मेदारी ली है। हमलावरों ने पर्यटकों से उनकी धार्मिक पहचान पूछी और हिंदुओं को निशाना बनाकर गोलीबारी की, जिसमें 26 लोग मारे गए और 17 घायल हुए।
विदेश सचिव मिसरी ने कहा कि सुरक्षा समिति की बैठक में हमले के सीमा पार संबंधों को उजागर किया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह हमला जम्मू-कश्मीर में हाल के सफल विधानसभा चुनावों और आर्थिक प्रगति को अस्थिर करने की साजिश का हिस्सा है।
आगे की राह और अंतरराष्ट्रीय नजरिया
इन कदमों ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बढ़ा दिया है, और पाकिस्तान ने अपनी सेना को हाई अलर्ट पर रखा है। भारत के इस रुख को पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल जैसे विशेषज्ञों ने “रणनीतिक प्रतिक्रिया” करार दिया है, जो न केवल पाकिस्तान बल्कि क्षेत्र के अन्य देशों, जैसे बांग्लादेश, के लिए भी एक संदेश है।
हालांकि, सिंधु जल समझौते का निलंबन अंतरराष्ट्रीय समुदाय में विवाद पैदा कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी कूटनीतिक ताकत का प्रदर्शन करना होगा ताकि विश्व बैंक और अन्य मंचों पर होने वाले विरोध का सामना कर सके।
पहलगाम आतंकी हमले ने भारत को एक बार फिर आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी के नेतृत्व में भारत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वह सीमा पार आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। ये कदम न केवल पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी हैं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकते हैं।
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