जून 13, 2025
नई दिल्ली, 10 मई 2025: भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के दिनों में बढ़े तनाव और सैन्य टकराव के बाद दोनों देशों ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण युद्धविराम समझौते की घोषणा की।
नई दिल्ली, 10 मई 2025: भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के दिनों में बढ़े तनाव और सैन्य टकराव के बाद दोनों देशों ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण युद्धविराम समझौते की घोषणा की। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने नई दिल्ली में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर एक विशेष ब्रीफिंग के दौरान बताया कि पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशक (DGMO) ने आज दोपहर 15:35 बजे भारतीय DGMO को फोन किया। इस बातचीत में दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी कि भारतीय मानक समयानुसार 17:00 बजे से जमीन, हवा और समुद्र में सभी प्रकार की गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाएगा।
इस समझौते को लागू करने के लिए दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों को तुरंत निर्देश जारी किए गए हैं। विदेश सचिव ने यह भी बताया कि दोनों देशों के DGMO 12 मई 2025 को दोपहर 12:00 बजे फिर से बातचीत करेंगे ताकि स्थिति की समीक्षा की जा सके और आगे की रणनीति पर चर्चा हो सके।
ऑपरेशन सिंदूर और तनाव की पृष्ठभूमि
ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत 7 मई 2025 को हुई, जब भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (PoJK) में आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल हमले किए। यह कार्रवाई 22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में थी, जिसमें 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक की मौत हो गई थी। भारत ने इस हमले के लिए लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और पाकिस्तान से जुड़े आतंकियों को जिम्मेदार ठहराया।
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान के मुरिदके और अन्य स्थानों पर आतंकी लॉन्च पैड्स को निशाना बनाया, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के कई प्रमुख आतंकी मारे गए। सूत्रों के अनुसार, इस ऑपरेशन में जैश के ऑपरेशनल कमांडर मुफ्ती असगर खान कश्मीरी के बेटे मोहम्मद हसन खान सहित पांच प्रमुख आतंकी ढेर किए गए।
पाकिस्तान ने इस कार्रवाई का जवाब देते हुए भारत के सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए, जिससे जम्मू, पठानकोट और अमृतसर जैसे क्षेत्रों में तनाव बढ़ गया। भारतीय वायुसेना ने अपने S-400 वायु रक्षा प्रणाली का उपयोग कर इन हमलों को नाकाम किया।
युद्धविराम की राह
पाकिस्तान के DGMO द्वारा भारतीय समकक्ष को फोन करने के बाद दोनों पक्षों ने तुरंत युद्धविराम लागू करने पर सहमति जताई। विदेश सचिव मिस्री ने स्पष्ट किया कि यह समझौता दोनों देशों के बीच सीधे बातचीत के जरिए हुआ, हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर दावा किया कि यह युद्धविराम अमेरिकी मध्यस्थता का परिणाम है। भारतीय सूत्रों ने अमेरिकी भूमिका को कमतर बताते हुए कहा कि यह निर्णय भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत का नतीजा है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने भी युद्धविराम की पुष्टि करते हुए कहा कि यह "पूर्ण और तत्काल" प्रभाव से लागू होगा। उन्होंने इसकी घोषणा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर की और कहा कि पाकिस्तान हमेशा क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के लिए प्रयासरत रहा है, बिना अपनी संप्रभुता से समझौता किए।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अमेरिकी उपराष्ट्रपति मार्को रुबियो ने इस समझौते को 48 घंटे की गहन बातचीत का परिणाम बताया, जिसमें वाशिंगटन की भी भूमिका थी। उन्होंने दोनों देशों के नेताओं की इस दिशा में की गई मेहनत की सराहना की।
भारत में, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने युद्धविराम का स्वागत करते हुए कहा, "शांति आवश्यक है... भारत कभी लंबे समय तक युद्ध नहीं चाहता था। भारत ने आतंकियों को सबक सिखाने के लिए युद्ध शुरू किया था, और वह सबक सिखाया जा चुका है।"
पाकिस्तान में, लाहौर और मुजफ्फराबाद जैसे शहरों में लोगों ने युद्धविराम का उत्साहपूर्वक स्वागत किया। कुछ स्थानों पर लोग "लॉन्ग लिव पाकिस्तान" के नारे लगाते हुए सड़कों पर उतरे और इसे "राष्ट्रीय गौरव" का क्षण बताया।
आगे की राह
यह युद्धविराम दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, भारत ने साफ कर दिया है कि भविष्य में पाकिस्तान की ओर से कोई भी आतंकी गतिविधि युद्ध का कारण बनेगी। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच इंडस जल संधि को निलंबित रखा जाएगा।
12 मई को होने वाली DGMO स्तर की बातचीत में दोनों पक्ष नियंत्रण रेखा (LoC) पर शांति बनाए रखने और भविष्य में तनाव को रोकने के उपायों पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा, दोनों देशों ने 12 मई को दोपहर 12:00 बजे उच्च स्तरीय कूटनीतिक वार्ता शुरू करने पर भी सहमति जताई है।
ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद हुए सैन्य टकराव ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलता को उजागर किया। यह युद्धविराम दोनों देशों के लिए शांति और स्थिरता की दिशा में एक अवसर है, लेकिन इसका दीर्घकालिक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों पक्ष कितनी गंभीरता से इस समझौते को लागू करते हैं और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर सहयोग करते हैं।
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