जुलाई 08, 2025
भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेने के तुरंत बाद जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में बाबा साहब डॉ. बी.आर. अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
नई दिल्ली, 14 मई 2025: भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेने के तुरंत बाद जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में बाबा साहब डॉ. बी.आर. अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए। यह ऐतिहासिक क्षण न केवल जस्टिस गवई के व्यक्तिगत जीवन की उपलब्धि को दर्शाता है, बल्कि उनके अम्बेडकरवादी मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति गहरी निष्ठा को भी उजागर करता है।
जस्टिस गवई, जो देश के पहले बौद्ध और दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश बने हैं, ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा शपथ ग्रहण के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर सबसे पहले महात्मा गांधी और बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमाओं पर फूल चढ़ाए। इस दौरान कुछ लोगों ने 'जय भीम' के नारे के साथ उनका अभिवादन किया, जिसका जवाब जस्टिस गवई ने भी 'जय भीम' कहकर दिया। यह क्षण सुप्रीम कोर्ट परिसर में उपस्थित लोगों के लिए भावनात्मक और गौरवपूर्ण रहा।
जस्टिस गवई का परिवार लंबे समय से बाबा साहब अंबेडकर के विचारों से प्रेरित रहा है। उनके पिता, रामकृष्ण सूर्यभान गवई, एक प्रमुख अम्बेडकरवादी नेता, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक और बिहार, सिक्किम व केरल के पूर्व राज्यपाल थे। उन्होंने बाबा साहब के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। जस्टिस गवई ने कई मौकों पर कहा है कि उनकी सफलता का श्रेय बाबा साहब के संविधान और सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) को जाता है। पिछले साल एक भाषण में उन्होंने कहा था, "यह पूरी तरह से डॉ. बी.आर. अंबेडकर के प्रयासों का परिणाम है कि मैं, जो एक अर्ध-झुग्गी क्षेत्र के म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ा, इस मुकाम तक पहुंच सका।"
राष्ट्रपति भवन के गणतंत्र मंडप में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल सहित कई केंद्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के वर्तमान व सेवानिवृत्त न्यायाधीश मौजूद थे। जस्टिस गवई ने अपने पूर्ववर्ती CJI संजीव खन्ना का स्थान लिया, जो 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त हुए।
जस्टिस गवई का जीवन और करियर
24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे जस्टिस गवई का बचपन फ्रेजरपुरा की झुग्गी-झोपड़ियों के बीच बीता। उन्होंने मराठी माध्यम के म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ाई की और 1985 में वकालत शुरू की। 2003 में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने और 2019 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुए। अपने करियर में उन्होंने 700 से अधिक बेंचों में हिस्सा लिया और 300 से ज्यादा फैसले लिखे, जिनमें आर्टिकल 370 की समाप्ति और बुलडोजर कार्रवाइयों पर सख्त दिशानिर्देश जैसे महत्वपूर्ण निर्णय शामिल हैं।
सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता
जस्टिस गवई की नियुक्ति को सामाजिक समावेशन की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। वह न केवल दूसरे दलित CJI हैं (पहले जस्टिस के.जी. बालकृष्णन, 2007-2010), बल्कि पहले बौद्ध CJI भी हैं। उनकी मां, कमलताई गवई, ने कहा, "उनका कठिन परिश्रम और गरीबों की सेवा ने उन्हें यह सम्मान दिलाया। मुझे विश्वास है कि उनके फैसले जन-उन्मुख होंगे।"
आगे की राह
जस्टिस गवई का कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक, यानी छह महीने से थोड़ा अधिक समय का होगा। इस दौरान उनसे संविधान, सामाजिक न्याय और कानून के शासन को मजबूत करने की उम्मीद की जा रही है। उनकी अम्बेडकरवादी सोच और समावेशी न्यायिक दृष्टिकोण को देखते हुए, उनका कार्यकाल देश के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट परिसर में बाबा साहब को श्रद्धांजलि देने का उनका यह कदम न केवल उनकी निजी आस्था को दर्शाता है, बल्कि भारत के संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक समानता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है।
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