जून 13, 2025

चंदोला, अहमदाबाद में गरीबों के घरों पर बुलडोजर: बांग्लादेशी घुसपैठ के बहाने बेघर हुए लोग, कहाँ जाएँगे ये गरीब?

May 22, 2025
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गुजरात के चंदोला झील क्षेत्र में हाल ही में शुरू हुए बड़े पैमाने पर डिमोलिशन ड्राइव ने हजारों गरीब परिवारों को बेघर कर दिया है।

अहमदाबाद, गुजरात के चंदोला झील क्षेत्र में हाल ही में शुरू हुए बड़े पैमाने पर डिमोलिशन ड्राइव ने हजारों गरीब परिवारों को बेघर कर दिया है। अहमदाबाद नगर निगम (AMC) और पुलिस ने 20 मई 2025 से शुरू हुए इस अभियान के दूसरे चरण में 2.5 लाख वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र में फैले लगभग 8,500 अवैध संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया।


 अधिकारियों का दावा है कि यह कार्रवाई चंदोला झील के आसपास अवैध अतिक्रमण और कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों को हटाने के लिए की जा रही है। लेकिन इस अभियान ने कई सवाल खड़े किए हैं: क्या सभी प्रभावित लोग वाकई अवैध प्रवासी हैं? और अगर नहीं, तो ये गरीब परिवार

 अब कहाँ जाएँगे?
डिमोलिशन ड्राइव का पृष्ठभूमि और विवाद
चंदोला झील, जो अहमदाबाद के दक्षिणी हिस्से में 109.6 हेक्टेयर में फैली है, लंबे समय से अवैध बस्तियों का केंद्र रही है। इस क्षेत्र को "बांग्लादेशी बस्ती" के रूप में जाना जाता है, और पुलिस के अनुसार, यहाँ कई बांग्लादेशी नागरिक बिना वैध दस्तावेज़ों के रह रहे थे। 2025 में अब तक 250 बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से 207 चंदोला क्षेत्र से थे, और 200 से अधिक को निर्वासित किया जा चुका है। 



हालांकि, स्थानीय निवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि इस कार्रवाई में कई भारतीय नागरिकों, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लोगों को भी निशाना बनाया गया है। गुजरात आधारित माइनॉरिटी कोऑर्डिनेशन कमेटी के संयोजक मुजाहिद नफीस ने कहा, "पहलगाम हमले के बाद 1000 से अधिक लोगों को बांग्लादेशी बताकर हिरासत में लिया गया, लेकिन 850 लोग भारतीय निकले। सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए गरीबों को बेघर कर रही है।"


 
गरीबों पर क्या असर पड़ा?
चंदोला झील के आसपास बसी बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर, रैग-पिकर, और छोटे-मोटे काम करने वाले हैं। इनमें से कई परिवार दशकों से यहाँ रह रहे हैं। 58 निवासियों ने गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया कि वे 60 साल से अधिक समय से यहाँ रह रहे हैं और उन्हें बांग्लादेशी बताकर गलत तरीके से हिरासत में लिया गया। कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि चंदोला झील एक अधिसूचित जल निकाय है और यहाँ कोई निर्माण वैध नहीं है। 



इस डिमोलिशन ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया है। कई परिवार सड़कों पर रहने को मजबूर हैं, बिना किसी वैकल्पिक आवास की व्यवस्था के। AMC ने 8 मई को उन लोगों के लिए पुनर्वास योजना को सैद्धांतिक मंजूरी दी है, जो 2010 से पहले से चंदोला में रह रहे थे। लेकिन यह योजना अभी पूरी तरह लागू नहीं हुई है, और 10,000 EWS घरों के निर्माण में अभी 12 महीने और लग सकते हैं। 
सामाजिक और मानवाधिकार पर सवाल
इस कार्रवाई को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं ने सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस विधायक शैलेश परमार और AMC में विपक्ष के नेता शहज़ाद खान ने डिमोलिशन के दौरान भारतीय मजदूरों के घरों को निशाना बनाए जाने का मुद्दा उठाया। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बावजूद, जिसमें बुलडोजर कार्रवाई से पहले वैकल्पिक व्यवस्था की बात कही गई है, सरकार ने गरीबों को बेघर करने में जल्दबाजी दिखाई। 



मुजाहिद नफीस ने इसे "मुस्लिम समुदाय को परेशान करने की साजिश" करार दिया, क्योंकि प्रभावित लोगों में ज्यादातर मुस्लिम हैं। वहीं, कुछ X पोस्ट्स में इसे बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के रूप में समर्थन मिला, लेकिन इनमें तथ्यात्मक सटीकता की कमी है। 
पर्यावरण और भविष्य की योजना
AMC का दावा है कि इस डिमोलिशन से चंदोला झील को पुनर्जनन और पर्यावरण संरक्षण के लिए खाली किया जा रहा है। 25,000 टन मलबे को रीसाइकल कर पेवर ब्लॉक और बेंच जैसी सामग्री बनाई जाएगी। लेकिन पर्यावरण संरक्षण के नाम पर गरीबों को बेघर करने की नीति पर सवाल उठ रहे हैं। क्या यह कार्रवाई वाकई जल निकाय की रक्षा के लिए है, या इसके पीछे कोई और मकसद है?


गरीब कहाँ जाएँगे?


जिन लोगों के घर तोड़े गए, उनके पास न तो तत्काल आश्रय है और न ही पर्याप्त संसाधन। कई परिवार खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं, और बारिश का मौसम नजदीक होने से उनकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। गुजरात स्लम रिहैबिलिटेशन पॉलिसी (2013, 2015) के तहत प्रभावित लोगों को पुनर्वास का अधिकार है, लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा। 



चंदोला झील के आसपास का डिमोलिशन ड्राइव अवैध अतिक्रमण और बांग्लादेशी घुसपैठ को रोकने के नाम पर शुरू हुआ, लेकिन इसने हजारों गरीब भारतीय परिवारों को भी प्रभावित किया है। बिना पर्याप्त पुनर्वास योजना के यह कार्रवाई मानवाधिकारों का उल्लंघन मानी जा रही है। सरकार को चाहिए कि वह प्रभावित लोगों के लिए तत्काल वैकल्पिक आवास और आजीविका की व्यवस्था करे, ताकि ये गरीब बेघर न हों। 

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