जून 13, 2025

वक्फ़ बिल सुप्रीम कोर्ट में तीन दिनों तक तीखी बहस चली, जिसके बाद 22 मई 2025 को सुनवाई पूरी हो गई और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

May 22, 2025
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वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में तीन दिनों तक तीखी बहस चली, जिसके बाद 22 मई 2025 को सुनवाई पूरी हो गई और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में तीन दिनों तक तीखी बहस चली, जिसके बाद 22 मई 2025 को सुनवाई पूरी हो गई और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई की। दोनों पक्षों—याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार—ने अपनी दलीलें पेश कीं, जिसमें वक्फ संशोधन कानून के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा हुई। इस लेख में मामले का विस्तृत विवरण, दोनों पक्षों की दलीलें, और कोर्ट की टिप्पणियों को समझाया गया है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का पृष्ठभूमि
केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 8 अप्रैल 2025 से लागू किया, जिसे भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया था। यह कानून संसद के दोनों सदनों से पारित होने और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद प्रभावी हुआ। इस संशोधन का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही, और सुधार लाना बताया गया।

 प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:
वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में सुधार: गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में शामिल करने का प्रावधान।
वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण: संपत्तियों के रिकॉर्ड को डिजिटल करने और अनधिकृत कब्जों पर सख्ती।
लिमिटेशन एक्ट का लागू होना: धारा 107 को हटाकर वक्फ बोर्ड को लिमिटेशन एक्ट, 1963 के दायरे में लाना, ताकि संपत्ति दावों पर समय सीमा लागू हो।


जिला कलेक्टर की भूमिका: यदि कलेक्टर किसी संपत्ति को सरकारी जमीन के रूप में पहचानता है, तो उसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा, जब तक कि कोर्ट अंतिम निर्णय न दे।
महिलाओं और उत्तराधिकारियों के अधिकार: मुस्लिम महिलाओं और कानूनी उत्तराधिकारियों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए प्रावधान।


हालांकि, इस कानून का कई मुस्लिम संगठनों, विपक्षी दलों, और नेताओं ने विरोध किया, जिन्होंने इसे संविधान के खिलाफ और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 100 से अधिक याचिकाएं दाखिल की गईं।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का विवरण
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 16 अप्रैल 2025 को शुरू हुई थी, जब मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को सुना। चूंकि जस्टिस खन्ना 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त हो गए, मामला जस्टिस बी.आर. गवई की पीठ को सौंपा गया। 20 मई से 22 मई 2025 तक लगातार तीन दिनों तक सुनवाई चली, जिसमें दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें पेश कीं।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
याचिकाकर्ताओं में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, और अन्य शामिल थे। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन, वरुण सिन्हा, और अन्य ने दलीलें पेश कीं। प्रमुख दलीलें निम्नलिखित थीं:


धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन:
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वक्फ संशोधन कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक मामलों के प्रबंधन की आजादी की गारंटी देता है।
वक्फ को मुस्लिम समुदाय के लिए एक धार्मिक और सामाजिक-आर्थिक संस्था बताया गया, और सरकारी हस्तक्षेप को उनकी धार्मिक स्वायत्तता पर हमला माना गया।
गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने को धार्मिक संस्था के चरित्र के खिलाफ बताया गया। कपिल सिब्बल ने कहा कि यह ऐसा है जैसे हिंदू धार्मिक ट्रस्ट में गैर-हिंदुओं को शामिल किया जाए, जो संविधान के तहत स्वीकार्य नहीं है।


वक्फ बाय यूजर का प्रावधान हटाना:
याचिकाकर्ताओं ने 'वक्फ बाय यूजर' प्रावधान को हटाने पर आपत्ति जताई, जिसके तहत लंबे समय तक धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली संपत्तियों को वक्फ माना जाता है, भले ही उनके पास औपचारिक दस्तावेज न हों।
कोर्ट में तर्क दिया गया कि 14वीं से 16वीं शताब्दी की मस्जिदों जैसे कई वक्फ संपत्तियों के पास बिक्री विलेख (sale deed) नहीं हैं। इस प्रावधान को हटाने से ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों की स्थिति खतरे में पड़ सकती है।


कलेक्टर को दी गई शक्तियां:
नए कानून में जिला कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी संपत्ति को सरकारी जमीन घोषित कर सकता है, जिसे तब तक वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा जब तक कोर्ट अंतिम निर्णय न दे। याचिकाकर्ताओं ने इसे वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता पर अतिक्रमण बताया।
कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि यह प्रावधान वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की प्रक्रिया को जटिल बनाता है और मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों पर दावा करने की क्षमता को कमजोर करता है।


संविधान के मूल ढांचे पर हमला:
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह कानून संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर देश को ध्रुवीकृत और विभाजित करना है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे “मुसलमानों की धार्मिक आजादी पर सीधी चोट” बताते हुए कानून को रद्द करने की मांग की।
केंद्र सरकार की दलीलें
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश कीं। सरकार ने कानून को संवैधानिक और सुधारवादी बताया। 

प्रमुख दलीलें निम्नलिखित थीं:

पारदर्शिता और जवाबदेही:
सरकार ने तर्क दिया कि संशोधन का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है। रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण और अनधिकृत कब्जों पर सख्ती जैसे कदमों को सुधार के रूप में पेश किया गया।
सरकार ने कहा कि 2013 के संशोधन के बाद वक्फ संपत्तियों में 21 लाख एकड़ की वृद्धि हुई, जिससे कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद पैदा हुए। लिमिटेशन एक्ट लागू करने से वक्फ बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगेगी।



महिलाओं और उत्तराधिकारियों के अधिकार:
केंद्र ने दावा किया कि कानून मुस्लिम महिलाओं, विशेष रूप से विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं, के अधिकारों को सुरक्षित करता है। स्वयं सहायता समूहों और वित्तीय स्वतंत्रता कार्यक्रमों को बढ़ावा देने जैसे प्रावधानों को इसका हिस्सा बताया गया।
सरकार ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करने के अधिकार के अनुरूप है।


वक्फ बोर्ड का प्रशासनिक स्वरूप:
सरकार ने तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड एक धार्मिक संस्था नहीं, बल्कि एक वैधानिक और प्रशासनिक निकाय है। इसलिए, गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करने पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है।
बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल, जो संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष रहे, ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि वक्फ बोर्ड एक कानूनी संस्था है, न कि धार्मिक।


कानून की संवैधानिकता:
केंद्र ने 25 अप्रैल 2025 को दाखिल 1,332 पन्नों के हलफनामे में कहा कि यह कानून संसद से पारित हुआ है और संवैधानिकता का अनुमान इसके पक्ष में है।
सरकार ने याचिकाओं को “काल्पनिक आधार” पर दायर बताया और कहा कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के कोई विशिष्ट उदाहरण नहीं दिए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और निर्देश
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां और निर्देश जारी किए:



वक्फ बाय यूजर पर सवाल:
कोर्ट ने 'वक्फ बाय यूजर' प्रावधान को हटाने पर चिंता जताई। जस्टिस खन्ना ने कहा कि 14वीं-16वीं शताब्दी की मस्जिदों जैसे कई वक्फ संपत्तियों के पास औपचारिक दस्तावेज नहीं हैं। ऐसे में इस प्रावधान को हटाना संवैधानिक संकट पैदा कर सकता है।
कोर्ट ने सुझाव दिया कि वक्फ बाय यूजर या कोर्ट द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए।



गैर-मुस्लिम सदस्यों पर सवाल:
कोर्ट ने पूछा कि यदि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जाता है, तो क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में गैर-हिंदुओं को शामिल करने की अनुमति देगी।
कोर्ट ने सुझाव दिया कि बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के स्थायी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, हालांकि एक्स-ऑफिशियो सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।



कलेक्टर की शक्तियों पर आपत्ति:
कोर्ट ने कलेक्टर को दी गई शक्तियों पर आपत्ति जताई, खासकर यह प्रावधान कि कलेक्टर की जांच के दौरान संपत्ति का वक्फ दर्जा खत्म हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि जांच के दौरान यथास्थिति बनी रहनी चाहिए।



अंतरिम राहत पर विचार:

कोर्ट ने संकेत दिया कि वह कानून के कुछ प्रावधानों, जैसे वक्फ संपत्तियों का डिनोटिफिकेशन, गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, और कलेक्टर की शक्तियों पर अंतरिम रोक लगा सकता है।
हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह आम तौर पर संसद से पारित कानून पर रोक नहीं लगाता, जब तक कि असाधारण परिस्थितियां न हों।


याचिकाओं को सीमित करना:
कोर्ट ने कहा कि 110-120 याचिकाओं को पढ़ना संभव नहीं है। इसलिए, केवल पांच मुख्य आपत्तियों पर सुनवाई होगी, और याचिकाकर्ताओं को नोडल वकीलों के माध्यम से इन बिंदुओं पर सहमति बनानी होगी।
कोर्ट ने 1995 के वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार किया।


नई नियुक्तियों पर रोक:


कोर्ट ने आदेश दिया कि सुनवाई पूरी होने तक केंद्रीय वक्फ परिषद या राज्य वक्फ बोर्डों में कोई नई नियुक्ति नहीं होगी। केंद्र ने भी इसकी पुष्टि की।
लिखित नोट्स का आदेश:
कोर्ट ने दोनों पक्षों को 19 मई तक लिखित नोट्स दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसके आधार पर 20 मई को पूरे दिन सुनवाई हुई।


वर्तमान स्थिति


22 मई 2025 को तीन दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने कहा कि वह कानून पर अंतरिम राहत देने पर विचार कर सकता है, लेकिन संसद से पारित कानून को रद्द करना संभव नहीं है, जब तक कि मजबूत दलीलें न हों।



मामले का महत्व
यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, अल्पसंख्यक अधिकारों, और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल वक्फ संशोधन कानून की वैधता तय करेगा, बल्कि धार्मिक दान की संपत्तियों के प्रबंधन पर भी दीर्घकालिक प्रभाव डालेगा। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुनवाई संवैधानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।



सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून, 2025 पर तीखी बहस हुई, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन और संविधान के खिलाफ बताया, जबकि सरकार ने इसे पारदर्शिता और सुधार के लिए जरूरी ठहराया। कोर्ट ने 'वक्फ बाय यूजर', गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, और कलेक्टर की शक्तियों जैसे मुद्दों पर गंभीर सवाल उठाए। सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया है, और अब सभी की नजर कोर्ट के अंतिम निर्णय पर टिकी है। 

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